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सोशल मीडिया पर अफवाहों से रहे सतर्क

 मेरी अभिव्यक्ति
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हाल में देश दादरी काण्ड से जल उठा है। किस तरह से एक अफवाह से लोगों की तथाकथित धार्मिक आस्था आहत होती है और फिर कैसे हज़ारों की संख्या में लोग अपनी घायल आस्था के असहनीय टीस को दिल में संजोए एक निहत्थे और निर्दोष पर टूट पड़ते हैं, इसका उदहारण आज देश के सामने है। यह घटना क्यों हुई, इसमें किसका हाथ है, इन सभी सवालों से इतर यह जानना ज़रूरी हो जाता है कि इस तरह के अफ़वाह को इतनी तव्वजो कैसे मिल पाती है या ऐसी खबरें इतनी जल्दी लोगों तक कैसे पहुँच जाती हैं जिससे लोग एक उन्माद को जन्म देते हैं।
पिछले कुछ वर्षों में घटे सांप्रदायिक घटनाओं पर गौर करें तो पाएंगे कि किसी भी खबर अथवा सुचना के संप्रेषण में दंगाई सोशल नेटवर्क का भरपूर इस्तेमाल करते हैं। फिर चाहे 2012 के असम दंगे की बात हो, पिछले वर्ष के मुज़्ज़फर नगर दंगे की बात हो या हाल का दादरी कांड हो, सब में कुछ समानता है तो वो सूचनाओं के प्रचार और प्रसार का माध्यम है।
आज हम ऐसे वक़्त में जी रहे हैं जिसमे सूचनाओं का प्रसार इतनी तेज़ी से हो रहा है कि लोगों के पास उस खबर के सत्यता की पुष्टि करने का भी समय नहीं होता जिस खबर से वो रूबरू हो रहे हैं और अनजाने में वो चंद लोगों के हाथ की कठपुतली बन के रह जाते हैं।
मुज़्ज़फ़रनगर दंगे में जिस वीडियो का सहारा दंगे को भड़काने में लिया गया था बाद में उसकी जांच पर पता चला कि वो पाकिस्तान का था। मुज़्ज़फ़रनगर दंगे में 62 लोगों के मौत की पुष्टि की गयी थी। कुछ ऐसा ही वाकया दादरी काण्ड में देखने को मिला, जिस वायरल हुए फ़ोटो के बिनाह पर लोगों के बिच गोमांस की अफ़वाह फैलाया गई वो भी गलत निकला। जब तक लोगों को बात समझ में आती उससे पहले घटना घट चुकी थी।
आज देश डजीटल दुनिया में आहिस्ता आहिस्ता अपने कदम मजबूत कर रहा है। देश की आबादी का एक बहुत बड़ा वर्ग सोशल मीडिया के किसी न किसी हिस्से, जैसे व्हट्सऐप, फेसबुक या ट्विटर पर सक्रिय है। ऐसे माध्यमो पर जो सूचनाएं मिलती हैं लोग उसकी पुष्टि किए बिना उसे अपने मन मस्तिष्क में उतार लेते हैं जिससे ऐसे उन्माद को जन्म दिया जाता है। देश के हुक्मरान भी इस बात को मानते है की आज कल दंगो को भड़काने में सोशल मीडिया का सहारा लिया जा रहा है, पर ये विडंबना ही है की अब तक साइबर कानून में ऐसे अफवाहों की रोक थाम या अफ़वाह फ़ैलाने वालों के लिए भी किसी दंड का प्रावधान नहीं हो पाया है।
देश की आबादी जब सोशल नेटवर्क पर आज तेज़ी से बढ़ रही है, ऐसे में यह समय की मांग है कि साइबर कानून की नए सिरे से समीक्षा की जाए। सरकारी खेमे को ऑनलाइन बुली, सांप्रदायिक दंगों को भड़काने जैसे असामाजिक हरकतों पर लगाम लगाने के लिए सख्त कानून पारित करने होंगे। देश में धार्मिक, सांप्रदायिक और सामाजिक समेत अधिकतर आंतरिक मामलों को आज सोशल मीडिया द्वारा प्रभावित किया जा रहा है। ऐसे में यह जरुरी हो जाता है कि सोशल मीडिया द्वारा पड़ने वाला प्रभाव देश सौहार्द, एकता और अखंडता को बढ़ावा देते हुए जनहितकारी हो।

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