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रेल के भविष्य और वर्तमान के बीच पिसती सरकार

 मेरी अभिव्यक्ति
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सरकार द्वारा भविष्य में देश के विकास के कदम को और आगे ले जाने हेतु जिन बिन्दुओं पर विचार करने है अगर उन पर गौर करे तो पाएँगे की हाई स्पीड बुलेट ट्रेन धड़ धड़ाते हुए अपने छप्पन इंच के सीने के साथ जनता के सामने खड़ी हो जाती है। समय और विकास की बदलती अवधारणा के साथ ये बदलाव भी बहुत जरुरी है पर इस बात पर विचार जरुरी है कि क्या विकास का ये प्रारूप देश की मौजूदा संरचना में फिट बैठने लायक है ?
भारतीय रेल दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क और दुनिया में सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार देने वाली संस्था है पर इन सब के बाद भी अपने कुव्यवस्था के लिए यह ख्याती प्राप्त है। कभी समय पर ना रहना, ख़राब सुरक्षा बंदोबस्त और आए दिन लगातर हो रही रेल दुर्घटनाएं प्रशासन के काम काज़ के रवैये पर प्रश्न चिन्ह लगाने के लिए काफी हैं।
आंकड़ो की माने तो 2014 में कुल 27,581 लोग रेल दुर्घटना में मारे जा चुके हैं, जिसमें से 2575 लोगों की दूर्घटना रेलवे क्रासिंग पर हुई और इसमें से कुल 17.5% लोग सुबह के 6 से 9 बजे के बीच दुर्घटनाग्रस्त हुए। इन 17.5% लोगों पर ध्यान इसलिए भी जरुरी है क्योंकि इनमे से ज्यदातर लोग शौच के दौरान मारे गए हैं।
अब ऐसे में सवाल ये है की जब हाल की स्थिति में जब ये दुर्दशा है तो पहले वर्त्तमान व्यवस्था को दुरुस्त करने के बजाय हवाई पूल क्यों बनाया जा रहा है।
हाल में हुए एक चीन के अर्थशास्त्री के टी.वी. इंटरव्यू मे ये बात सामने आई कि चीन जिसे हम विश्व के विकसित देशों में गिनते हैं, वहां की ज्यादातर मध्यमवर्गीय जनता बुलेट ट्रेन में यात्रा करने से परहेज करती है, कारण- ट्रेन का महंगा किराया।
बड़े बड़े अर्थशास्त्री और विशेषज्ञ इस बात से हैरान हैं की भारत में बुलेट ट्रेन को क्यों विकास के पैमाने के तौर पर लोगों के सामने परोसा जा रहा है।
जिस मुम्बई-अहमदाबाद कोरीडोर पर सरकार हाई स्पीड बुलेट चलाने का सपना देख रही है केवल उतने पर बुलेट ट्रेन की पटरीयों को लगाने से लेकर के ट्रेन के चलने तक का खर्चा लगभग 1,40,000 करोड़ रुपये है जो की वर्तमान में हमारे देश के रेल का वार्षिक फायदा है, और इस ट्रेन में यात्रा करने के एक व्यक्ति का अनुमानित किराया 9 रुपये प्रति किलो मीटर होगा जो कि प्लेन के किराए से भी महंगा साबित हो रहा है।
दरअसल जो मौजूदा हालात है उसे देखकर हम ये कह सकते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था अपने बुरे दिनों को किसी तरह से बैसाखी के सहारे काट रही है ऐसे में देश को बुलेट ट्रेन का गिफ्ट बैसाखी को और कमज़ोर ही करेगी।
कुल मिला कर के वर्तमान स्थिति में देश बुलेट ट्रेन के लिए तैयार नहीं है अगर सरकार कुछ करना चाहती है तो वर्त्तमान हालत जो अभी रेलवे की है इसमें कुछ सुधार करे, क्योंकि रेलवे भी भ्रष्टाचार के दीमक से बचा नहीं है पहले इसमें सुधार कर के नागरिकों को रेलवे की मूलभूत सुविधाएँ दे।

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